- The HP Teachers - हिमाचल प्रदेश - शिक्षकों का ब्लॉग: शिक्षक दिवस पर एक शिक्षक का दुख शिक्षक दिवस पर एक शिक्षक का दुख

शिक्षक दिवस पर एक शिक्षक का दुख

आज शिक्षक दिवस है। फेसबुक पर हजारों पोस्ट देख सकते हैं। अपने शिक्षक की प्रशंसा भरी पोस्ट भी देख सकते हैं। लेकिन हम कभी शिक्षक के दुख को नहीं देखते।

एक शिक्षक का क्या दुख है यह हमने कभी जानने की कोशिश ही नहीं की।

शिक्षक के बिना समाज की कल्पना असंभव है,शिक्षक के दुखों को जाने बिना समाज को जानना भी असंभव है। कोई समाज कैसा है यह तय करना हो तो शिक्षकों को देखो, उनकी समस्याओं को देखो, उनके जीवन में घट रहे अंतर्विरोधों को देखो। शिक्षक के दुख निजी और सार्वजनिक दोनों किस्म के हैं।

मैं यहां जिस दुख की ओर ध्यान खींचना चाहता हूँ वह सार्वजनिक दुख हैं, जिनसे एक शिक्षक को गुजरना पड़ रहा है।

आज के शिक्षक का सबसे बड़ा दुख यह है कि वह ´विदेशी´की जकड़बंदी में कैद है।

´विदेशी´ बनने में उसे बहुत ज्यादा ऊर्जा खर्च करनी पड़ रही है। ´विदेशी´ बनने की पीड़ा उसकी अपनी निजी पीड़ा नहीं है बल्कि उस पर व्यवस्था ने थोपी है।

´विदेशी´भावबोध अर्जित करने के लिए इन दिनों भयानक होड़ मची हुई है। इस क्रम में शिक्षक अनुवाद कर रहा है। अनुवाद में जी रहा है।
शिक्षक का अनुवाद में जीना,अनुवाद में सोचना उसकी सबसे बड़ी पीड़ा है।

वो कक्षा में जाता है तो अंग्रेजी में पढ़ाता है और अंग्रेजी का मन ही मन अनुवाद करता रहता है। हर चीज को अंग्रेजी के माध्यम से सम्प्रेषित करने की कोशिश करता है।  अंग्रेजी में वो जब पढ़ाता है ,तो जाने-अनजाने अपनी स्वाभाविक भाषा,परिवेस की भाषा से अलग हो जाता है।

किसी शिक्षित व्यक्ति का अभिव्यक्ति प्रक्रिया में अपनी भाषा से अलग हो जाना सबसे त्रासदी है।
जगदीश्वर चतुर्वेदी
जगदीश्वर चतुर्वेदी। लेखक प्रगतिशील चिंतक, आलोचक व मीडिया क्रिटिक हैं। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रहे चतुर्वेदी जी आजकल कोलकाता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। वे हस्तक्षेप के सम्मानित स्तंभकार हैं।

एक शिक्षक की सबसे बड़ी ताकत उसकी भाषा होती है,वह अपनी भाषा में जितना रमण कर सकता है उतना वह अन्य भाषा में रमण नहीं कर सकता। हमारे बीच में अब हालात इस कदर बदतर हो गए हैं कि अपनी भाषा से कट जाने को हम शिक्षक की पीड़ा या दुख नहीं मानते बल्कि खुश होते हैं और गर्व के साथ कहते हैं कि वो अंग्रेजी माध्यम से बढ़िया पढ़ाते हैं।

हम यह भूल ही जाते हैं कि वे अंग्रेजी का अनुवाद करके पढ़ाते हैं, अंग्रेजी उनकी नेचुरल भाषा नहीं है।
एक शिक्षक के हाथों जब अपनी भाषा मरती है तो मुझे बहुत कष्ट होता है।

मैं बार-बार महसूस करता हूँ कि एक शिक्षक को अपनी स्वाभाविक भाषा में पढ़ाना चाहिए।

अंग्रेजी हमारे शिक्षक की स्वाभाविक भाषा नहीं है वह अनुवाद की भाषा है। शिक्षक जब स्वाभाविक भाषा में नहीं पढ़ाएगा तो विषय के मर्म को न तो समझ पाएगा और न समझा पाएगा।

यही वजह है  हमारे यहां जो शिक्षितवर्ग निकल रहा है वह शिक्षा के अर्थबोध से ही वंचित है। उसके पास डिग्री है लेकिन वह डिग्री का वास्तविक अर्थ नहीं जानता।

अनुवाद की भाषा अंततःशिक्षक के मूल मंतव्य और आशय को समझने में सबसे बड़ी बाधा के रूप में खड़ी रहती है। यही वजह है हमारे देश में डिग्रीधारी तो अनेक हैं लेकिन शिक्षित लोग बहुत कम हैं। हमने एक ऐसा शिक्षक तैयार किया है जो अनुवाद की भाषा में काम चला रहा है।

मेरा सबसे बड़ा दुख यही है कि मेरे शिक्षक की स्वाभाविक भाषा खत्म हो रही है। कोई इस ओर ध्यान देने को तैयार नहीं है।

अंग्रेजी माध्यम से पठन-पाठन की महत्ता और सत्ता का इन दिनों जिस तरह जयघोष चल रहा है उसको देखते हुए वह दिन दूर नहीं जब अपनी भाषाओं को पढ़ने -पढ़ाने के लिए हम विदेश जाया करेंगे।
एक शिक्षक की पहली जिम्मेदारी है कि वह अंग्रेजी की कैद से बाहर निकले।

यदि हम सच में शिक्षक और शिक्षा का दर्जा ऊँचा करना चाहते हैं तो हमें अपना रवैय्या बदलना होगा। ग्लोबल होने का अर्थ अनुवाद की भाषा में जीना नहीं होता। ग्लोबल का लोकल के बिना कोई सार्थक अर्थ निर्मित नहीं होता।

मेरा दुख यह है कि विद्यार्थी अपरिचित भाषा में, परायी भाषा में पढ़ता है,जीता है। मैं सभी शिक्षकों का सम्मान करते हुए विनम्रतापूर्वक कहना चाहता हूँ कि अंग्रेजी माध्यम के जरिए पढ़ाने से छात्रों में मौलिक चिंतन का विकास नहीं हो पाता। वे अपरिचित भाषा के जाल में फंसे रहते हैं।

अंग्रेजी में पढ़ने का एक दुष्परिणाम यह भी हुआ है बच्चों में रटने की आदत का विकास हुआ है। वे सवालों पर सोचते नहीं हैं बल्कि रटे-रटाए उत्तर देकर परीक्षा पास कर लेते हैं। इस समूची प्रक्रिया में कुछ ही छात्र अपना विकास कर पाते हैं अधिकतर तो  डिग्रीधारी होकर रह जाते हैं।

एक शिक्षक के नाते मेरा सबसे बड़ा दुख यह है कि मैंने छात्र पैदा नहीं किए, डिग्रीधारी पैदा किए। यह मेरी सबसे बड़ी असफलता भी है।
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
Previous Post Next Post

Popular Posts

Weekly Updates

5/col-left/recent

Recent

► Govt Jobs updates

Recent Posts

4/footer/recent

Random Posts

4/footer/random

Current Affairs

15/col-right/random

$ok={Accept !} $days={7}

Our website uses cookies to improve your experience. Learn more

Ads Area

Advertisement