शिमला। जिस विभाग का मुखिया खुद राज्य का मुख्यमंत्री हो, उसी विभाग का रिजल्ट शर्मनाक आए तो इसे क्या कहा जाएगा ? हिमाचल में दसवीं कक्षा के खराब रिजल्ट को लेकर पिछले एक पखवाड़े से प्रदेश भर में जोरदार बहस चली है।
आलम यह है कि मैरिट लिस्ट में सरकारी स्कूलों के केवल दो ही छात्र स्थान बना पाए। कुल 19 स्कूलों में एक भी छात्र पास नहीं हुआ। जब चारों तरफ से सरकार की आलोचना होने लगी तो शिक्षा विभाग के मुखिया यानी मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को अपने ही विभाग की खैर-खबर लेने के लिए मीटिंग बुलानी पड़ी। शर्मनाक रिजल्ट के बाद से ही हिमाचल में शिक्षा विभाग में बैठकों का दौर जारी है। कई तरह के आदेश निकाले जा रहे हैं। खुद मुख्यमंत्री गुरूवार को शिक्षा विभाग की मीटिंग लेने जा रहे हैं।
ऐसा रहा रिजल्ट, दसवीं में सोलह स्कूलों को मिली जीरो
हिमाचल में दसवीं कक्षा का परिणाम आने पर सरकारी स्कूलों की बदहाल दशा सामने आई। दसवीं कक्षा में प्रदेश के सोलह सरकारी स्कूलों का रिजल्ट जीरो रहा। चंबा जिला के कुरैना हाई स्कूल, कुल्लू का शारवी स्कूल, लाहौल-स्पाीति के तीन स्कूल, शिमला के पांच सरकारी स्कूल, कांगड़ा का एक स्कूल व सिरमौर जिला के एक स्कूल का रिजल्ट भी जीरो रहा। यानी कोई भी छात्र दसवीं कक्षा पास नहीं कर पाया। लाहौल स्पीति के घोषल स्कूल में कुल दो छात्र थे। इनमें से एक फेल हो गया और एक की कंपार्टमेंट आई।
यही नहीं, बारहवीं कक्षा में तीन स्कूलों का रिजल्ट जीरो रहा। दसवीं व बारहवीं कक्षा का रिजल्ट देखा जाए तो 124 स्कूलों की परफार्मेंस पुअर रही है। इन स्कूलों का रिजल्ट 20 फीसदी से भी कम रहा है।
अब दनादन फैसले ले रहा शिक्षा विभाग
खराब रिजल्ट के बाद जब चारों तरफ से सरकारी एजुकेशन सिस्टम की आलोचना होने लगी तो शिक्षा विभाग की नींद खुली। उसके बाद से सारे जिलों से रिपोर्ट मंगवाई गई। शिक्षा निदेशालय में बैठकों का दौर शुरू हुआ। जिन स्कूलों का रिजल्ट खराब आया, वहां से रिपोर्ट तलब की गई। पढ़ाई में कमजोर बच्चों के लिए अतिरिक्त कक्षाएं लगाने के आदेश दिए गए।
सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के पास हजार बहाने
अच्छी-खासी तनख्वाह पाने वाले सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को पास खराब रिजल्ट के बावजूद खुद को जस्टीफाई करने के हजार बहाने हैं। शिक्षक संघों का कहना है कि सरकारी स्कूल के अध्यापकों की चुनाव ड्यूटी लगाने के अलावा उनसे अन्य कई गैर शिक्षण कार्य लिए जाते हैं। फिर कई स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है। एक अन्य तर्क है कि जब आठवीं कक्षा तक छात्रों को फेल नहीं किया जाता तो आगे दसवीं कक्षा का रिजल्ट कैसे सुधर सकता है। ये सही है कि हिमाचल के स्कूलों में कई जगह शिक्षकों की कमी है, लेकिन परिणाम खराब आने पर कोई बहानेबाजी नहीं की जा सकती।
बिना सुविधाओं के स्कूल अपग्रेड करने से हुआ नुकसान
हिमाचल सरकार पर ये आरोप लगते आए हैं कि राजनीतिक लाभ के लिए जगह-जगह स्कूल खोल दिए जाते हैं और सुविधाएं दी नहीं जाती। एक उदाहरण से इसे समझा जा सकता है। श्रीनगर में आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए हिमाचल के शिमला जिला के दूरस्थ गांव चिखर के जांबाज कमांडो ओमप्रकाश के गांव में हाल ही में स्कूल अपग्रेड हुआ। हाई स्कूल को अपग्रेड कर सीनियर सेकेंडरी स्कूल बनाया गया। इस स्कूल में कुल 78 बच्चे हैं और अध्यापक मात्र तीन हैं। हैरानी की बात है कि ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा में 35 बच्चों की एडमिशन हुई, लेकिन पढ़ाने के लिए एक भी शिक्षक नहीं है। ऐसा ही हाल अन्य कई स्कूलों का है। इसके अलावा कई स्कूलों में सरप्लस शिक्षक हैं। सिस्टम में पैठ रखने वाले शिक्षक अपनी सुविधा के अनुसार मनपसंद स्कूलों में तैनाती लेते हैं। शहरों व कस्बों के आसपास के स्कूलों में कई जगह सरप्लस शिक्षक हैं। ग्रामीण इलाकों में शिक्षकों की कमी है। हिमाचल प्रदेश में 3511 हाई स्कूल व 2012 सीनियर सेकेंडरी स्कूल हैं।
क्या हो सकता है समाधान
हिमाचल में नए स्कूल खोलने की बजाय पहले से मौजूद सरकारी स्कूलों का ढांचा सुधारा जाना चाहिए। सरप्लस शिक्षकों को उन स्कूलों में भेजा जाए, जहां पर शिक्षक कम हैं। हर साल रिजल्ट की समीक्षा और खराब रिजल्ट वालों की जवाबदेही तय की जाए। खाली शिक्षकों के पद भरे जाएं। इसके अलावा शिक्षकों को गैर शिक्षण कार्यों से मुक्त किया जाए।
सीएम के पास चार-चार विभाग, कैसे होगा बेड़ा पार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पास इस समय शिक्षा विभाग, लोक निर्माण विभाग, वित्त विभाग और गृह विभाग का जिम्मा है। हालांकि मुख्य संसदीय सचिव (सीपीएस) नीरज भारती को शिक्षा विभाग के साथ संबद्ध किया गया है, लेकिन सीपीएस के पास न तो फाइल साइन करने की अथॉरिटी है और न ही अन्य कोई पॉवर। ऐसे में नीरज भारती का कोई एक्टिव रोल नहीं रहता है।
सोचने वाली बात है कि जब सीएम के पास चार-चार विभाग हों तो वे किस विभाग को कितना टाइम दे पाते होंगे? इसके अलावा मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह हिमाचल प्रदेश कला-संस्कृति व भाषा अकादमी के अध्यक्ष भी हैं। अकादमी का सारा कार्यभार भी सीएम पर है।
एक मंत्री के पास अनेक विभाग, कैसे होगा काम
हिमाचल सरकार में सिंचाई व जनस्वास्थ्य मंत्री विद्या स्टोक्स के पास बागवानी विभाग भी है। इसके अलावा वे कांग्रेस का चुनावी घोषणा पत्र लागू करने के लिए जिम्मेदार कैबिनेट सब-कमेटी की चेयरपर्सन भी हैं। वहीं, स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह ठाकुर के पास राजस्व विभाग का कार्यभार भी है।
परिवहन मंत्री जीएस बाली के पास खाद्य व नागरिक आपूर्ति विभाग, तकनीकी शिक्षा विभाग भी है। उर्जा मंत्री सुजान सिंह पठानिया के पास कृषि विभाग का भी जिम्मा है। ऐसे में एक से अधिक विभाग होने पर सभी के साथ न्याय करना संभव नहीं हो पाता।
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
आलम यह है कि मैरिट लिस्ट में सरकारी स्कूलों के केवल दो ही छात्र स्थान बना पाए। कुल 19 स्कूलों में एक भी छात्र पास नहीं हुआ। जब चारों तरफ से सरकार की आलोचना होने लगी तो शिक्षा विभाग के मुखिया यानी मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को अपने ही विभाग की खैर-खबर लेने के लिए मीटिंग बुलानी पड़ी। शर्मनाक रिजल्ट के बाद से ही हिमाचल में शिक्षा विभाग में बैठकों का दौर जारी है। कई तरह के आदेश निकाले जा रहे हैं। खुद मुख्यमंत्री गुरूवार को शिक्षा विभाग की मीटिंग लेने जा रहे हैं।
ऐसा रहा रिजल्ट, दसवीं में सोलह स्कूलों को मिली जीरो
हिमाचल में दसवीं कक्षा का परिणाम आने पर सरकारी स्कूलों की बदहाल दशा सामने आई। दसवीं कक्षा में प्रदेश के सोलह सरकारी स्कूलों का रिजल्ट जीरो रहा। चंबा जिला के कुरैना हाई स्कूल, कुल्लू का शारवी स्कूल, लाहौल-स्पाीति के तीन स्कूल, शिमला के पांच सरकारी स्कूल, कांगड़ा का एक स्कूल व सिरमौर जिला के एक स्कूल का रिजल्ट भी जीरो रहा। यानी कोई भी छात्र दसवीं कक्षा पास नहीं कर पाया। लाहौल स्पीति के घोषल स्कूल में कुल दो छात्र थे। इनमें से एक फेल हो गया और एक की कंपार्टमेंट आई।
यही नहीं, बारहवीं कक्षा में तीन स्कूलों का रिजल्ट जीरो रहा। दसवीं व बारहवीं कक्षा का रिजल्ट देखा जाए तो 124 स्कूलों की परफार्मेंस पुअर रही है। इन स्कूलों का रिजल्ट 20 फीसदी से भी कम रहा है।
अब दनादन फैसले ले रहा शिक्षा विभाग
खराब रिजल्ट के बाद जब चारों तरफ से सरकारी एजुकेशन सिस्टम की आलोचना होने लगी तो शिक्षा विभाग की नींद खुली। उसके बाद से सारे जिलों से रिपोर्ट मंगवाई गई। शिक्षा निदेशालय में बैठकों का दौर शुरू हुआ। जिन स्कूलों का रिजल्ट खराब आया, वहां से रिपोर्ट तलब की गई। पढ़ाई में कमजोर बच्चों के लिए अतिरिक्त कक्षाएं लगाने के आदेश दिए गए।
सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के पास हजार बहाने
अच्छी-खासी तनख्वाह पाने वाले सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को पास खराब रिजल्ट के बावजूद खुद को जस्टीफाई करने के हजार बहाने हैं। शिक्षक संघों का कहना है कि सरकारी स्कूल के अध्यापकों की चुनाव ड्यूटी लगाने के अलावा उनसे अन्य कई गैर शिक्षण कार्य लिए जाते हैं। फिर कई स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है। एक अन्य तर्क है कि जब आठवीं कक्षा तक छात्रों को फेल नहीं किया जाता तो आगे दसवीं कक्षा का रिजल्ट कैसे सुधर सकता है। ये सही है कि हिमाचल के स्कूलों में कई जगह शिक्षकों की कमी है, लेकिन परिणाम खराब आने पर कोई बहानेबाजी नहीं की जा सकती।
बिना सुविधाओं के स्कूल अपग्रेड करने से हुआ नुकसान
हिमाचल सरकार पर ये आरोप लगते आए हैं कि राजनीतिक लाभ के लिए जगह-जगह स्कूल खोल दिए जाते हैं और सुविधाएं दी नहीं जाती। एक उदाहरण से इसे समझा जा सकता है। श्रीनगर में आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए हिमाचल के शिमला जिला के दूरस्थ गांव चिखर के जांबाज कमांडो ओमप्रकाश के गांव में हाल ही में स्कूल अपग्रेड हुआ। हाई स्कूल को अपग्रेड कर सीनियर सेकेंडरी स्कूल बनाया गया। इस स्कूल में कुल 78 बच्चे हैं और अध्यापक मात्र तीन हैं। हैरानी की बात है कि ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा में 35 बच्चों की एडमिशन हुई, लेकिन पढ़ाने के लिए एक भी शिक्षक नहीं है। ऐसा ही हाल अन्य कई स्कूलों का है। इसके अलावा कई स्कूलों में सरप्लस शिक्षक हैं। सिस्टम में पैठ रखने वाले शिक्षक अपनी सुविधा के अनुसार मनपसंद स्कूलों में तैनाती लेते हैं। शहरों व कस्बों के आसपास के स्कूलों में कई जगह सरप्लस शिक्षक हैं। ग्रामीण इलाकों में शिक्षकों की कमी है। हिमाचल प्रदेश में 3511 हाई स्कूल व 2012 सीनियर सेकेंडरी स्कूल हैं।
क्या हो सकता है समाधान
हिमाचल में नए स्कूल खोलने की बजाय पहले से मौजूद सरकारी स्कूलों का ढांचा सुधारा जाना चाहिए। सरप्लस शिक्षकों को उन स्कूलों में भेजा जाए, जहां पर शिक्षक कम हैं। हर साल रिजल्ट की समीक्षा और खराब रिजल्ट वालों की जवाबदेही तय की जाए। खाली शिक्षकों के पद भरे जाएं। इसके अलावा शिक्षकों को गैर शिक्षण कार्यों से मुक्त किया जाए।
सीएम के पास चार-चार विभाग, कैसे होगा बेड़ा पार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पास इस समय शिक्षा विभाग, लोक निर्माण विभाग, वित्त विभाग और गृह विभाग का जिम्मा है। हालांकि मुख्य संसदीय सचिव (सीपीएस) नीरज भारती को शिक्षा विभाग के साथ संबद्ध किया गया है, लेकिन सीपीएस के पास न तो फाइल साइन करने की अथॉरिटी है और न ही अन्य कोई पॉवर। ऐसे में नीरज भारती का कोई एक्टिव रोल नहीं रहता है।
सोचने वाली बात है कि जब सीएम के पास चार-चार विभाग हों तो वे किस विभाग को कितना टाइम दे पाते होंगे? इसके अलावा मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह हिमाचल प्रदेश कला-संस्कृति व भाषा अकादमी के अध्यक्ष भी हैं। अकादमी का सारा कार्यभार भी सीएम पर है।
एक मंत्री के पास अनेक विभाग, कैसे होगा काम
हिमाचल सरकार में सिंचाई व जनस्वास्थ्य मंत्री विद्या स्टोक्स के पास बागवानी विभाग भी है। इसके अलावा वे कांग्रेस का चुनावी घोषणा पत्र लागू करने के लिए जिम्मेदार कैबिनेट सब-कमेटी की चेयरपर्सन भी हैं। वहीं, स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह ठाकुर के पास राजस्व विभाग का कार्यभार भी है।
परिवहन मंत्री जीएस बाली के पास खाद्य व नागरिक आपूर्ति विभाग, तकनीकी शिक्षा विभाग भी है। उर्जा मंत्री सुजान सिंह पठानिया के पास कृषि विभाग का भी जिम्मा है। ऐसे में एक से अधिक विभाग होने पर सभी के साथ न्याय करना संभव नहीं हो पाता।
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC