राज्य ब्यूरो, शिमला : शिक्षा विभाग के दोहरे मापदंडों के कारण कई
शिक्षक काफी लंबे अरसे से कबायली क्षेत्रों में फंसे हुए हैं। कई कर्मचारी
अपना सामान्य कार्यकाल कबायली क्षेत्रों में पूरा किए बगैर ही स्वेच्छा के
स्टेशन पर तैनाती ले रहे हैं। जिन शिक्षकों अथवा कर्मियों का सरकार में काई
नहीं है, उन्हें विपरीत परिस्थितियों के बावजूद कबायली क्षेत्रों से बाहर
इसलिए नहीं भेजा जाता है क्योंकि उन पर विकल्प की शर्त थोप दी जाती है।
इन्हीं आरोपों के चलते प्रार्थी नागपाल ने हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर कर सरकार के दोगले रवैये को उजागर किया था।
प्रार्थी के अनुसार उसे सितंबर 2012 में किन्नौर जिला के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला रिब्बा में तैनात किया गया था। प्रार्थी ने सामान्य कार्यकाल पूरा करने के बाद प्रतिवेदन के माध्यम से स्वेच्छा वाले स्टेशन पर ट्रांसफर की गुहार लगाई थी। शिक्षा निदेशक ने प्रार्थी को प्रतिवेदन को यह कहकर लंबित रख दिया कि विभाग के पास उसका विकल्प उपलब्ध नहीं है जो केवल नई नियुक्ति या पदोन्नति केकारण ही उपलब्ध हो सकता है। 28 नवंबर 2015 को पारित इस निर्णय के तहत प्रार्थी ने विकल्प का इंतजार किया। इस दौरान सरकार ने कई पदोन्न्तियां की परंतु प्राथ्र्ीा के स्थान पर विकल्प नहीं भेजा गया। पांच दिसंबर को शिक्षा विभाग ने जेबीटी केपद से अनेक टीजीटी पदोन्नत किए थे। प्रार्थी के अनुसार प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा एक मामले में पारित निर्णय के तहत यह व्यवस्था दी गई है कि राज्य सरकार का यह दायित्व होगा कि वह यह सुनिश्चित करे कि हर कर्मचारी कबायली क्षेत्र में कार्य करे ताकि वहां कार्य करने वाले कर्मियों को समय पर विकल्प उपलब्ध हो। शिक्षा विभाग इस निर्णय का पालन करने के बजाए नई नियुक्तियों या पदोन्नतियों में विकल्प तलाशता रहता है जो हाईकोर्ट के आदेशों की अवमानना है। प्रार्थी के इन आरोपों के दृष्टिगत न्यायाधीश संजय करोल व न्यायाधीश तरलोक चौहान की खंडपीठ ने प्रार्थी का दो माह के भीतर कबायली क्षेत्र से तबादला करने के आदेश पारित किए हैं। इसी समयावधि के दौरान विकल्प उपलब्ध करने का दायित्व भी शिक्षा विभाग का होगा।
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
इन्हीं आरोपों के चलते प्रार्थी नागपाल ने हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर कर सरकार के दोगले रवैये को उजागर किया था।
प्रार्थी के अनुसार उसे सितंबर 2012 में किन्नौर जिला के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला रिब्बा में तैनात किया गया था। प्रार्थी ने सामान्य कार्यकाल पूरा करने के बाद प्रतिवेदन के माध्यम से स्वेच्छा वाले स्टेशन पर ट्रांसफर की गुहार लगाई थी। शिक्षा निदेशक ने प्रार्थी को प्रतिवेदन को यह कहकर लंबित रख दिया कि विभाग के पास उसका विकल्प उपलब्ध नहीं है जो केवल नई नियुक्ति या पदोन्नति केकारण ही उपलब्ध हो सकता है। 28 नवंबर 2015 को पारित इस निर्णय के तहत प्रार्थी ने विकल्प का इंतजार किया। इस दौरान सरकार ने कई पदोन्न्तियां की परंतु प्राथ्र्ीा के स्थान पर विकल्प नहीं भेजा गया। पांच दिसंबर को शिक्षा विभाग ने जेबीटी केपद से अनेक टीजीटी पदोन्नत किए थे। प्रार्थी के अनुसार प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा एक मामले में पारित निर्णय के तहत यह व्यवस्था दी गई है कि राज्य सरकार का यह दायित्व होगा कि वह यह सुनिश्चित करे कि हर कर्मचारी कबायली क्षेत्र में कार्य करे ताकि वहां कार्य करने वाले कर्मियों को समय पर विकल्प उपलब्ध हो। शिक्षा विभाग इस निर्णय का पालन करने के बजाए नई नियुक्तियों या पदोन्नतियों में विकल्प तलाशता रहता है जो हाईकोर्ट के आदेशों की अवमानना है। प्रार्थी के इन आरोपों के दृष्टिगत न्यायाधीश संजय करोल व न्यायाधीश तरलोक चौहान की खंडपीठ ने प्रार्थी का दो माह के भीतर कबायली क्षेत्र से तबादला करने के आदेश पारित किए हैं। इसी समयावधि के दौरान विकल्प उपलब्ध करने का दायित्व भी शिक्षा विभाग का होगा।
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