- The HP Teachers - हिमाचल प्रदेश - शिक्षकों का ब्लॉग: सुनो सरकार, दो वक्त की रोटी का है सवाल सुनो सरकार, दो वक्त की रोटी का है सवाल

सुनो सरकार, दो वक्त की रोटी का है सवाल

हिमाचल दस्तक। ठियोग
सूबे के स्कूलों में कार्य कर रहे करीब 6800 पीटीए अध्यापक नियमितीकरण की बाट जोह रहे है। इन शिक्षकों को स्कूलों में कार्य करते हुए 12 वर्ष से अधिक का समय हो चूका है लेकिन आज तक नियमित नहीं हो पाए है। इस दौरान इन शिक्षकों पर खूब राजनीति हुई। सरकार चाहे कांग्रेस की हो या भाजपा की इनके लिए स्थायी नीति और नियमितीकरण का लॉलीपॉप दिया जाता रहा।

विधान सभा के चुनाव के समय हर पार्टी इनके लिए पॉलिसी का भरोसा देते है लेकिन फिर पूरे 5 साल निकल जाते है। इन शिक्षकों के आंदोलन को पूर्व धूमल सरकार के समय विधान सभा के बाहर घोड़े दौड़ाकर कुचला गया। लेकिन पीटीए शिक्षक हमेशा से अपने अध्यापन के दायित्व का पूरी ईमानदारी से निर्वहन करते रहे।
इन शिक्षकों की नियुक्तियों को कोर्ट में चुनौती दी गई। दिसंबर 2014 में हाई कोर्ट की डबल बैंच ने इन शिक्षकों के हक में फैसला सुनाया। इसके बाद इन्हें अनुबंध में लाया गया। याचिकाकर्ता पंकज कुमार ने हाई कोर्ट के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इससे कुछ् पीटीए शिक्षक अनुबंध में आने से छुट गए। इस साल मुख्य याचिकाकर्ता पंकज केस को वापिस ले चुका है। लेकिन 2 अन्य केस इन शिक्षकों के खिलाफ होने की बात कही जा रही है।
पीटीए अनुबंध अध्यापक 3 साल का कार्यकाल पूरा कर चुके है लेकिन फिर भी नियमितीकरण नहीं किया जा रहा है। इन शिक्षकों ने सरकार से मांग की है कि उन्हें रेगुलर किया जाए ताकि वे मुख्य धारा में आ सके।

क्यों हुई अस्थाई भर्तियां

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2005-06 में जब इन शिक्षकों की नियुक्तियां की गई तो उस समय अधीनस्त सेवाए चयन बोर्ड विवादों में था।चिट भर्ती मामले में बोर्ड पर क़ानूनी फेर में फंसा था।स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई बाधित न हो इसलिए इनकी तैनाती करनी पड़ी। शिक्षा विभाग में ऐसी अस्थाई भर्तियां पहले भी रही है। कभी वालेंटियर,एडहॉक, संविदा, ठेके पर शिक्षक नियुक्त हुए और नियमित भी हुए।

हमें भी परिवार पालना है


पीटीए शिक्षक संघ सदस्य अमृत शर्मा,पूजा कपूर,अनिल सरस्वती,सुनील गौतम,कल्पना राणा आदि ने कहा कि इन्हें भी अपने परिवार को पालना है। आज 12 साल से अधिक हो गया है। कई शिक्षक रिटायर भी पीटीए पर हो रहे है। पुरानी पेंशन पहले ही बंद है। हमें बेवहज राजनीति का शिकार बनाया जा रहा है। इन्होंने मांग की है कि सरकार उन्हें सशर्त नियमित कर सकती है।
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