- The HP Teachers - हिमाचल प्रदेश - शिक्षकों का ब्लॉग: मोदी सरकार के सामने क्या हैं चुनौतियां मोदी सरकार के सामने क्या हैं चुनौतियां

मोदी सरकार के सामने क्या हैं चुनौतियां

पिछले कार्यकाल में मोदी सरकार ने कई क़नूनों को अध्यादेश के रास्ते लागू किए थे, मसलन तीन तलाक़ क़ानून, उच्च शिक्षण संस्थाओं में शिक्षक भर्ती, आधार क़ानून आदि.
इन अध्यादेशों की जगह अब विधिवत क़ानून बनाने के लिए संसद में बिल पेश किए जाएंगे. इसलिए मोदी सरकार के सामने चुनौतियां भी हैं.

भारी बहुमत से जीतकर दोबारा सत्ता में आई नरेंद्र मोदी सरकार अपने इस कार्यकाल में कई और अहम विधेयक पास कराने की कोशिश करेगी.
राज्यसभा में 30 से अधिक वे बिल लटके हुए हैं, पारित न हो पाने से जिनकी वैधता ख़त्म हो गई है. लिहाज़ा इस सत्र में इन बिलों पर आम सहमति बनाने की कोशिश होगी.
नरेंद्र मोदी की नई सरकार बेहद विवादित रहे तीन तलाक विधेयक को एक बार फिर संसद से पारित कराने की कोशिश करेगी.

अहम विधेयक

अपने पिछले कार्यकाल में वो इस बिल को लोकसभा से पारित कराने में तो कामयाब रही थी, लेकिन राज्यसभा में विपक्ष ने इसपर आपत्ति जताई थी और वहां बिल पास नहीं हो सका था. जिसके बाद सरकार को अध्यादेश लाना पड़ा था.
जम्मू-कश्मीर आरक्षण (संशोधन) बिल, 2019 को भी इसी सत्र में पेश किया जाना है. इसके तहत जम्मू सेक्टर, सांबा सेक्टर में अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे गांववालों को 3 प्रतिशत आरक्षण दिया जाना प्रस्तावित है.
इससे पहले ये आरक्षण सिर्फ नियंत्रण रेखा से सटे इलाकों में रहने वाले लोगों को ही मिलता था. सरकार के मुताबिक इससे अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे 435 गांवों के साढ़े तीन लाख से अधिक लोगों को फायदा मिलेगा.
आधार से संबंधित विधेयक बहुत अहम है क्योंकि इसपर बार बार अध्यादेश लाकर लागू किया गया.
मोदी सरकार जिस तरह पिछले कार्यकाल में बहुत सारे विधेयकों को राज्यसभा में नहीं पास करा पाई, कमोबेश वही चुनौती इस बार भी उसके सामने है.
अगले एक साल में होने वाले विधानसभा चुनावों में अगर बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टियां अपने जीत का क्रम बरक़रार रखती हैं तब 2020 तक राज्यसभा में एनडीए को पूर्ण बहुमत मिलने की संभावना है.
इसलिए मोदी सरकार को अभी एक साल तक इंतज़ार करना होगा.
लेकिन फिलहाल सरकार के सामने चार ऐसे महत्वपूर्ण बिल हैं जिन पर सबकी निगाहें होंगी- तीन तलाक़, आधार, विश्वविद्यालयों में शिक्षक भर्ती और सीमावर्ती इलाक़ों में आरक्षण.
इस सत्र में बजट पेश किया जाना है और ये इस सरकार के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है. अभी हाल ही में नीति आयोग की बैठक में देश की आर्थिक स्थिति को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की गई.

अर्थव्यवस्था और बजट

दूसरी ओर मोदी सरकार ने 2024 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा है.
लेकिन अर्थव्यवस्था में मंदी के संकेत हैं, विकास दर सुस्त पड़ रही है. ऐसे में कारोबारी और उद्योगपति चाहते हैं कि सरकार उन्हें राहत देने वाले कुछ ठोस कदम उठाए.
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन के सामने कर सुधार का भी एक मसला है. देखना होगा कि मध्यवर्ग टैक्स में कोई कमी आ रही है कि नहीं जिससे मध्यवर्ग की बचत बढ़े.
ये इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि अगर बचत होगी तो उपभोक्ता सामानों की मांग भी बढ़ेगी. हालिया आंकड़े बताते हैं कि कारों की मांग में काफ़ी कमी आई है.
इसका मतलब है कि लोग इस बात की उम्मीद कर रहे हैं कि बजट के मार्फ़त सरकार कोई ऐसी नीति घोषित करेगी जिससे ठहराव के शिकार कारोबार को ऊर्जा मिल सके.
इस सरकार के सामने बेरोज़गारी एक बड़ी समस्या है. ये सरकार के सामने बड़ी चुनौती है.
इस चुनौती से निपटने के लिए कृषि क्षेत्र से शुरुआत हो रही है. नीति आयोग ने पिछली बैठक में कहा है कि कृषि क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाने के लिए एक उच्च स्तरीय कमेटी बनेगी.

2022 का लक्ष्य

ये कमेटी इस बात की संभावनाओं की तलाश करेगी कि कैसे कृषि क्षेत्र में किसानों की आमदनी को बढ़ाया जाए, नई टेक्नोलॉजी लाई जाए.
प्रधानमंत्री का ये नारा रहा है कि 'पर ड्रॉप मोर क्रॉप' यानी हर बूंद पर अधिक फसल. ये कमेटी सिंचाई की समस्याओं के हल का भी पता लगाएगी.
बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में उन सारी चीजों का ज़िक्र किया था, जो 2022 में भारत की आज़ादी के 75 साल पूरे होने तक किया जाने हैं.
इनमें कृषि क्षेत्र, मैन्युफ़ैक्चरिंग, स्किल डेवलपमेंट आदि शामिल हैं. ये बजट इन्हीं चीजों का एक ब्लूप्रिंट होगा.
मोदी सरकार को पिछली बार से भी शानदार बहुमत मिला है. लोगों को भरोसा है कि वो अपने वादों को पूरा करेंगे.
(बीबीसी संवाददाता गुरप्रीत सैनी से बीतचीत के आधार पर)
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