- The HP Teachers - हिमाचल प्रदेश - शिक्षकों का ब्लॉग: हिमाचल में शिक्षा : वर्ष 1948 के बाद हिमाचल प्रदेश में शिक्षा के विकास पर नोट लिखें हिमाचल में शिक्षा : वर्ष 1948 के बाद हिमाचल प्रदेश में शिक्षा के विकास पर नोट लिखें

हिमाचल में शिक्षा : वर्ष 1948 के बाद हिमाचल प्रदेश में शिक्षा के विकास पर नोट लिखें

 ब्लर्ब में

निजी संस्थानों में इंजीनियरिंग, एमबीए व बीफार्मा आदि की हजारों सीटें खाली रहती है। यहां युवाओं को डिग्री तो थमा दी जाती है, लेकिन हुनर विकसित नहीं होता


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शिक्षा के क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश की स्थिति कई राज्यों से बेहतर है, लेकिन यह संतोषजनक स्तर पर नहीं है। शिक्षा क्षेत्र को अभी कई चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है और जरूरी है कि इन्हें दूर करने के लिए समय रहते उपाय किए जाए। प्रदेश में स्कूलों की संख्या काफी है, लेकिन उस अनुपात में शिक्षकों की तैनाती सरकारें नहीं कर पाईं। प्रदेश में करीब तीन स्कूल ऐसे हैं जिनमें एक-एक अध्यापक है, जबकि 500 से अधिक स्कूलों को अनियमित शिक्षक चला रहे हैं। उच्च शिक्षा भी रोजगारपरक नहीं हो पा रही। सरकारी क्षेत्र के संस्थानों की हालत तो बेहतर है लेकिन निजी शिक्षण संस्थान लोगों की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पा रहे। इसी का नतीजा है कि हर साल इंजीनियरिंग, एमबीए व बीफार्मा आदि की हजारों सीटें खाली रह जाती हैं। बच्चों को पढ़ाकर डिग्र्री तो थमा दी जाती है, लेकिन उन्हें हुनरमंद नहीं बनाया जाता। इसी का नतीजा है कि चतुर्थ श्रेणी के पदों के लिए करने वालों में एमए, एमबीए या इंजानियरिंग की डिग्र्री हासिल कर चुके युवा कतार में खड़े नजर आ रहे हैं। युवा सरकारी नौकरियों का मोह छोड़ नहीं पा रहे, इसका सीधा सा कारण है कि युवा स्वरोजगार अपनाना नहीं चाहते या उन्हें इतना सक्षम नहीं बनाया जा सका कि वे हुनरमंद होकर अपना काम कर सकें। पढ़े-लिखे बेरोजगार युवाओं की फौज खड़ी होने का अर्थ उनमें कुंठा की भावना पैदा होना है। इसी के चलते प्रदेश में युवा नशे की चपेट में आ रहे हैं। इस पीढ़ी को इस बुराई से हटाकर मुख्य धारा में शामिल करना चुनौती होगा, जिससे पार पाने के लिए सार्थक कदमों की जरूरत है। इस समय सबसे बड़ी चुनौती शिक्षा व्यवस्था में सुधार करना होगा। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के दौरान ही अगर छात्रों को स्किल डेवलपमेंट से जोड़ दिया जाए तो अच्छी नौकरी पाने में सक्षम होंगे। हुनर विकसित होगा तो वे स्वरोजगार भी अपना सकते हैं। इससे बेरोजगारी की समस्या हल करने की दिशा में भी सफलता मिलेगी। निजी शिक्षण संस्थानों पर सरकार की नजर होनी चाहिए। देखा जाना चाहिए कि ये संस्थान शिक्षा की दुकानें बनकर ही न रह जाएं। सिर्फ पैसा कमाने के लिए खुलने वाले संस्थानों पर कड़ी कार्रवाई अपेक्षित है। सरकार का दायित्व है कि युवाओं को अच्छी व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देनी होगी ताकि वह रोजगार दिलाने में कारगर साबित हो। शिक्षा की गुणवत्ता बेहतर बनाने के लिए नई सोच चाहिए, नई नीति चाहिए। यह प्रभावशाली होनी चाहिए। यही पहाड़ी प्रदेश के हित में है, जहां 70 लाख की आबादी का बड़ा हिस्सा युवा हैं। इन्हीं कंधों पर प्रदेश को विकास पथ पर ले जाने की जिम्मेदारी है।

[ स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश ]

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