- The HP Teachers - हिमाचल प्रदेश - शिक्षकों का ब्लॉग: शिक्षा का स्तर न सुधरा तो खाली होंगे सरकारी स्कूल शिक्षा का स्तर न सुधरा तो खाली होंगे सरकारी स्कूल

शिक्षा का स्तर न सुधरा तो खाली होंगे सरकारी स्कूल

सरकारी स्कूलों में शिक्षा के गिरते स्तर तथा निजी स्कूलों की तर्ज पर मिल रही सुविधा का स्तर न बढ़ाया गया तो आने वाले कुछ सालों में सरकारी स्कूल पूरी तरह खाली हो जाएंगे। क्या कारण है कि सरकारी स्कूलों में अभिभावक अपने बच्चों को पढ़ाना नहीं चाहते? यहां तक कि सरकारी स्कूलों में सेवारत ज्यादातर शिक्षकों के बच्चे भी सरकारी स्कूलों की बजाय निजी स्कूलों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।

प्रदेश में सरकारी स्कूलों का मौजूदा शिक्षा स्तर चिंताजनक है। सर्वशिक्षा अभियान के गत वर्ष की वार्षिक रिपोर्ट पर नजर दौड़ाएं तो प्राथमिक स्तर पर जो आंकड़ा 45.8 फीसदी है, वह मिडिल स्तर पर गिरकर 32.5 फीसदी तक पहुंच चुका है। यही हाल ग्रेडिंग सिस्टम का है। यहां प्रदेश के सरकारी स्कूलों में 60 फीसदी बच्चे गणित विषय में कमजोर पाए गए हैं।

अंग्रेजी, हिंदी तथा विज्ञान विषयों के हालात भी सुखद नहीं हैं। प्राथमिक स्कूलों में तालीम का स्तर और भी चिंतनीय है। यहां ज्यादातर छात्रों को अक्षर ज्ञान तक नहीं है। छठी से दसवीं कक्षा तक के छात्रों को बेसिक की बहुत बड़ी कमजोरी पाई गई है। अंग्रेजी के टेंस तथा गणित में बेसिक गणित का ज्यादातर तक छात्रों को ज्ञान नहीं है।

यह हालात सरकारी स्कूलों के शैक्षणिक पक्ष को बेहद कमजोर साबित करने के लिए काफी है। प्राथमिक स्कूलों में हर साल करीब दो हजार छात्र कम हो रहे हैं। नए छात्र दाखिल नहीं होंगे तो मिडिल, उच्च तथा वरिष्ठ माध्यमिक स्कूलों में छात्रों की संख्या कैसी होगी, इसका अंदाजा लगाना कठिन नहीं होगा।

निशुल्क भी नहीं पढ़ाना चाहते अभिभावक- प्राथमिक स्कूलों में कोई दाखिला शुल्क नहीं है। वर्दी, पुस्तकें, दोपहर का भोजन तक सरकार मुहैया करवा रही है। बावजूद इसके अभिभावक निजी स्कूलों का रुख क्यों कर रहे हैं, यह चिंतन एवं मनन का विषय है। सर्वशिक्षा अभियान डाइट देहलां के प्रिंसिपल कमलदीप सिंह ने कहा कि ज्यादातर सरकारी स्कूलों में कई खामियां हैं।

बच्चों के गृहकार्य का अवलोकन सहीं ढंग से हो, टीचर डायरी लिखी जाए, पढ़ाई के प्रति शिक्षकों की इच्छाशक्ति हो, अध्यापन कार्य में शिक्षकों के पास एंजेडा हो, निजी स्कूलों से सरकारी शिक्षकों में प्रतिस्पर्धा की भावना हो, जो सुविधाएं निजी स्कूलों में हैं, उसी तर्ज पर सुविधाएं मिलें तो घटती तादाद पर रोक लग सकती है।

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