रोहड़ू [जितेंद्र मेहता]: शिक्षा सरकारी स्कूलों में
बेहतर मिलती है या निजी स्कूलों में..यह बहस का प्रश्न हो सकता है मगर
बदलाव की बयार साफ दिख रही है। सरकारी स्कूल में शिक्षकों की कमी के कारण
पढ़ाई प्रभावित हो रही थी तो अभिभावकों ने बच्चे वहां से निकाल कर निजी
स्कूलों में दाखिल करवा दिए।
शिक्षक की कमी दूर हुई तो लोगों ने बाकायदा प्रस्ताव पारित कर निजी स्कूलों से बच्चों को निकाल कर सरकारी स्कूल में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ाने का संकल्प ले लिया।
बात साफ है कि अभिभावक बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं। मामला शिमला जिला के तहत चिड़गांव के हरवाणी गांव का है। गांव में 1962 में सरकारी प्राथमिक स्कूल खुला। यहां पढ़ने वाले कई विद्यार्थी अब तक अधिकारी व कामयाब व्यवसायी बने हैं। वक्त के साथ स्कूल में विद्यार्थियों की संख्या कम होती गई, जिसका कारण शिक्षकों की कमी था। तीन साल से स्कूल में विद्यार्थियों की औसत संख्या 10 से 12 थी। स्कूल में पांच साल से एक जेबीटी तैनात था। कई लोगों ने अपने बच्चों को सरकारी स्कूल से निकाल कर निजी स्कूल में दाखिल करवा दिया।
दिसंबर में जब शीतकालीन सत्र वाले इस स्कूल में छुट्टियां हुईं तो विद्यार्थियों की संख्या महज छह थी। ऐसे में सरकार ने स्कूल को बंद करने की अधिसूचना दिसंबर में जारी कर दी तो लोग जागे। उन्होंने 55 साल पुराने इस स्कूल का अस्तित्व बचाए रखने के लिए पहल की। 13 फरवरी को स्कूल में नया शैक्षणिक सत्र आरंभ हुआ। 14 फरवरी को गांववासियों एवं निजी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने वाले अभिभावकों ने स्कूल प्रबंधन समिति के प्रधान भगवान सिंह की अध्यक्षता में बैठक की। पंच पपली देवी, दौलत राम, बनवारी लाल, बगवान दास, हाकम चंद, ममता देवी, सुनीता, मालती देवी, रोधामणी, प्रिया लाल, नीटू आजाद आदि बैठक में शामिल हुए। अभिभावकों ने कहा कि उनके बच्चे प्राथमिक स्कूल हरवाणी में पढ़ते थे। शिक्षक न होने पर उन्हें अपने बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ाने पड़े।
अब स्कूल में एक और शिक्षक आ गया है। छात्रों की कमी के कारण वे इस स्कूल को बंद नहीं होने देंगे। उनके बच्चे जो चिड़गांव व धमवाड़ी में निजी स्कूल में पढ़ते हैं, उन्हें वे अब सरकारी प्राथमिक स्कूल हरवाणी में पढ़ाएंगे। लोगों ने स्कूल को बचाने के लिए निजी स्कूलों से अपने 18 बच्चों को सरकारी स्कूल में लाने का प्रस्ताव पारित किया। स्कूल में एक और जेबीटी की नियुक्ति के आदेश दिसंबर में हो गए थे। नए शैक्षणिक सत्र में स्कूल में दो जेबीटी हो गए हैं।
शिक्षक की कमी दूर हुई तो लोगों ने बाकायदा प्रस्ताव पारित कर निजी स्कूलों से बच्चों को निकाल कर सरकारी स्कूल में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ाने का संकल्प ले लिया।
बात साफ है कि अभिभावक बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं। मामला शिमला जिला के तहत चिड़गांव के हरवाणी गांव का है। गांव में 1962 में सरकारी प्राथमिक स्कूल खुला। यहां पढ़ने वाले कई विद्यार्थी अब तक अधिकारी व कामयाब व्यवसायी बने हैं। वक्त के साथ स्कूल में विद्यार्थियों की संख्या कम होती गई, जिसका कारण शिक्षकों की कमी था। तीन साल से स्कूल में विद्यार्थियों की औसत संख्या 10 से 12 थी। स्कूल में पांच साल से एक जेबीटी तैनात था। कई लोगों ने अपने बच्चों को सरकारी स्कूल से निकाल कर निजी स्कूल में दाखिल करवा दिया।
दिसंबर में जब शीतकालीन सत्र वाले इस स्कूल में छुट्टियां हुईं तो विद्यार्थियों की संख्या महज छह थी। ऐसे में सरकार ने स्कूल को बंद करने की अधिसूचना दिसंबर में जारी कर दी तो लोग जागे। उन्होंने 55 साल पुराने इस स्कूल का अस्तित्व बचाए रखने के लिए पहल की। 13 फरवरी को स्कूल में नया शैक्षणिक सत्र आरंभ हुआ। 14 फरवरी को गांववासियों एवं निजी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने वाले अभिभावकों ने स्कूल प्रबंधन समिति के प्रधान भगवान सिंह की अध्यक्षता में बैठक की। पंच पपली देवी, दौलत राम, बनवारी लाल, बगवान दास, हाकम चंद, ममता देवी, सुनीता, मालती देवी, रोधामणी, प्रिया लाल, नीटू आजाद आदि बैठक में शामिल हुए। अभिभावकों ने कहा कि उनके बच्चे प्राथमिक स्कूल हरवाणी में पढ़ते थे। शिक्षक न होने पर उन्हें अपने बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ाने पड़े।
अब स्कूल में एक और शिक्षक आ गया है। छात्रों की कमी के कारण वे इस स्कूल को बंद नहीं होने देंगे। उनके बच्चे जो चिड़गांव व धमवाड़ी में निजी स्कूल में पढ़ते हैं, उन्हें वे अब सरकारी प्राथमिक स्कूल हरवाणी में पढ़ाएंगे। लोगों ने स्कूल को बचाने के लिए निजी स्कूलों से अपने 18 बच्चों को सरकारी स्कूल में लाने का प्रस्ताव पारित किया। स्कूल में एक और जेबीटी की नियुक्ति के आदेश दिसंबर में हो गए थे। नए शैक्षणिक सत्र में स्कूल में दो जेबीटी हो गए हैं।