शिमला
प्रदेश उच्च न्यायालय में लंबित जेबीटी अध्यापकों के 750 पदों को भरने संबंधी मामले पर सुनवाई 3 सप्ताह के लिए टल गई। राज्य सरकार टेट की मैरिट पर इन पदों को भरना चाहती है, जबकि मौजूद हालात में ऐसे कोई नियम ही नहीं है। वहीं, जो नियम सरकार ने इस बाबत बनाए थे, उन्हें ट्रिब्यूनल ने गत वर्ष 30 अगस्त को निरस्त कर दिया था। इसके बाद सरकार ने फिर से नए नियम बनाए, जिसके तहत अब भर्ती 50 फीसदी बैचवाइज और 50 फीसदी चयन आयोग के माध्यम से करने की प्रक्रिया अपनाई गई।
इन नए नियमों के बावजूद सरकार ने निरस्त हुए नियमों के तहत ही भर्ती को अंतिम रूप देने की इजाजत कोर्ट से मांगी थी, जिसे न्यायाधीश धर्मचंद चौधरी व न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर की खंडपीठ ने पिछली सुनवाई के बाद खारिज कर दिया था। हालांकि कोर्ट ने सरकार का आवेदन खारिज करते हुए कहा था कि सरकार मौजूदा नियमों के तहत जेबीटी के पदों को भरने के लिए स्वतंत्र है।
ट्रिब्यूनल ने 30 अगस्त, 2017 को इस नियम को खारिज कर दिया और 750 चयनित उम्मीदवारों को नियुक्ति पत्र जारी किए जाने का मामला लटक गया। सरकार ने ट्रिब्यूनल में पुनर्विचार याचिका दायर कर 11 जनवरी, 2018 को टेट की मेरिट पर आधारित पुरानी भर्ती प्रक्रिया को जारी रखने की इजाजत ले ली।
अभ्यर्थी राकेश कुमार ने ट्रिब्यूनल के इन आदेशों को हाईकोर्ट में चुनौती दी और 23 फरवरी को हाईकोर्ट ने जेबीटी के स्वीकृत 750 पदों को टेट की मैरिट से भरने पर रोक लगा दी। पुराने नियमों के तहत भर्ती को जारी रखने के समर्थन में दी गई सरकार की दलीलों के तहत यदि नये सिरे से जेबीटी के पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू की जाती है तो कम से कम 6 महीने के अतिरिक्त समय की जरूरत होगी, जबकि पुराने नियमों के तहत चयन प्रक्रिया पूरी कर ली गई है। केवल नियुक्ति पत्र जारी करना शेष रहता है। प्राथमिक स्कूलों में सैकड़ों जेबीटी के पद रिक्त पड़े हैं और शिक्षकों की कमी से बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो रही है। मामले पर अंतिम सुनवाई 8 मई को होगी।
प्रदेश उच्च न्यायालय में लंबित जेबीटी अध्यापकों के 750 पदों को भरने संबंधी मामले पर सुनवाई 3 सप्ताह के लिए टल गई। राज्य सरकार टेट की मैरिट पर इन पदों को भरना चाहती है, जबकि मौजूद हालात में ऐसे कोई नियम ही नहीं है। वहीं, जो नियम सरकार ने इस बाबत बनाए थे, उन्हें ट्रिब्यूनल ने गत वर्ष 30 अगस्त को निरस्त कर दिया था। इसके बाद सरकार ने फिर से नए नियम बनाए, जिसके तहत अब भर्ती 50 फीसदी बैचवाइज और 50 फीसदी चयन आयोग के माध्यम से करने की प्रक्रिया अपनाई गई।
इन नए नियमों के बावजूद सरकार ने निरस्त हुए नियमों के तहत ही भर्ती को अंतिम रूप देने की इजाजत कोर्ट से मांगी थी, जिसे न्यायाधीश धर्मचंद चौधरी व न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर की खंडपीठ ने पिछली सुनवाई के बाद खारिज कर दिया था। हालांकि कोर्ट ने सरकार का आवेदन खारिज करते हुए कहा था कि सरकार मौजूदा नियमों के तहत जेबीटी के पदों को भरने के लिए स्वतंत्र है।
सरकार ने टेट की मैरिट के आधार पर हो रही भर्ती प्रक्रिया को जारी रखा
उल्लेखनीय है कि प्रदेश सरकार ने वर्ष 2012 में जेबीटी के पदों को भरने हेतु टेट की मेरिट को आधार बनाया था। कुछ अभ्यर्थियों ने इस प्रावधान को यह कह कर चुनौती दी थी कि टेट केवल अध्यापक होने की आधारभूत योग्यता को दर्शाता है न कि यह नौकरी हेतु किसी प्रतियोगी परीक्षा में मेरिट को। इस दौरान सरकार ने टेट की मैरिट के आधार पर हो रही भर्ती प्रक्रिया को जारी रखा, परंतु चयनित उम्मीदवारों को नियुक्ति पत्र जारी नहीं किए।ट्रिब्यूनल ने 30 अगस्त, 2017 को इस नियम को खारिज कर दिया और 750 चयनित उम्मीदवारों को नियुक्ति पत्र जारी किए जाने का मामला लटक गया। सरकार ने ट्रिब्यूनल में पुनर्विचार याचिका दायर कर 11 जनवरी, 2018 को टेट की मेरिट पर आधारित पुरानी भर्ती प्रक्रिया को जारी रखने की इजाजत ले ली।
टेट मैरिट से भर्ती को यह तर्क दे रही सरकार
अभ्यर्थी राकेश कुमार ने ट्रिब्यूनल के इन आदेशों को हाईकोर्ट में चुनौती दी और 23 फरवरी को हाईकोर्ट ने जेबीटी के स्वीकृत 750 पदों को टेट की मैरिट से भरने पर रोक लगा दी। पुराने नियमों के तहत भर्ती को जारी रखने के समर्थन में दी गई सरकार की दलीलों के तहत यदि नये सिरे से जेबीटी के पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू की जाती है तो कम से कम 6 महीने के अतिरिक्त समय की जरूरत होगी, जबकि पुराने नियमों के तहत चयन प्रक्रिया पूरी कर ली गई है। केवल नियुक्ति पत्र जारी करना शेष रहता है। प्राथमिक स्कूलों में सैकड़ों जेबीटी के पद रिक्त पड़े हैं और शिक्षकों की कमी से बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो रही है। मामले पर अंतिम सुनवाई 8 मई को होगी।