शिमला: राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा शिक्षा का प्राथमिक उद्देश्य बच्चों में मानवीय मूल्यों का समावेश करना है तथा इस उद्देश्य की पूर्ति करते हुए राष्ट्र निर्माण की महत्वपूर्ण जिम्मेवारी के निर्वहन का दायित्व शिक्षकों पर है। राज्यपाल आज विकासनगर में सरस्वती विद्या मन्दिर द्वारा आयोजित हिमाचल शिक्षा समिति के प्रधानाचार्यों की दो दिवसीय कार्यशाला के अवसर पर बोल रहे थे।
आचार्य देवव्रत ने कहा कि भारतीय सभ्यता बेहद समृद्ध एवं प्राचीन है तथा हमारी सभ्यता का विशिष्ट पहलू मनुष्य में सद्भाव, दयाभाव और संवेदनशीलता जैसे गुणों का विकास कर मावन निर्माण पर बल देना है, जिससे समाज में शांति व समन्वय की भावना, भाई-चारा व एकत्व की भावना सुदृढ़ होती है।
प्राचीन गुरूकुल परम्परा की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि शिक्षक ऐसे प्रकाश स्तम्भ होते हैं, जो बच्चों की मनोवृति व भविष्य को आकार देने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करते हैं। उन्होंने कहा कि गुरूकुल परम्परा में बच्चों के शारीरिक विकास पर बल देने के साथ-साथ उनके मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास पर भी ध्यान दिया जाता है। यह परम्परा रोजगारोन्मुखी है तथा जिम्मेवार नागरिकों के निर्माण के साथ-साथ आत्मनिर्भर समाज के निर्माण में अपना योगदान देती है।
आचार्य देवव्रत ने कहा कि अभिभावकों की आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए अध्यापकों को अपने कर्तव्यों के निर्वहन के लिये पूर्ण समर्पण से कार्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि बच्चों के पाठ्यक्रम में अनुशासन, देशभक्ति, सेवाभाव, बड़ों और गुरूओं का सम्मान जैसे मूल्यों का समावेश होना चाहिए क्योंकि इनके बिना शिक्षा अधूरी है। उन्होंने कहा कि बच्चों को अपनी समृद्ध संस्कृति और वैभवशाली इतिहास की जानकारी प्रदान की जानी चाहिए तथा उनमें अपनी संस्कृति के प्रति गौरव की भावना का समावेश किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थियों में ज्ञान एवं गुणों का प्रादुर्भाव करना होना चाहिए ताकि वे जीवन की कठिन चुनौतियों का पूर्ण साहस से सामना कर सकें तथा बच्चों को इसके लिये तैयार करना अध्यापकों का प्रमुख दायित्व है। राज्यपाल ने हिमाचल शिक्षा समिति की वैबसाईट का भी शुभारम्भ किया।
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