हिमाचल सरकार ने ड्यूटी में कोताही बरतने पर प्रदेश के 22 शिक्षकों को
नोटिस जारी किए हैं। इन शिक्षकों पर आरोप है कि इनमें अधिकतर बिना आवेदन
किए छुट्टी पर रहे। कुछ ने ऐसा भी किया कि छुट्टी काटने के बाद लौटने पर
अर्जी दी। कई शिक्षक देरी से स्कूल आते पकड़े गए।
प्रदेश भर के स्कूलों में छापेमारी के बाद शिक्षकों के कारनामों की पोल खुली है। राज्य सरकार और शिक्षा विभाग के पास इस तरह की शिकायतें पहले से थीं। तभी पिछड़े क्षेत्रों के स्कूलों में छापेमारी की गई। इनमें शिमला, सिरमौर, किन्नौर, मंडी, कुल्लू और चंबा के ज्यादा शिक्षक शामिल हैं। इसका यह मतलब नहीं है कि बाकी के जिलों में सब ठीक चल रहा है। दरअसल स्कूलों में देरी से आना और जल्दी निकल जाना करीब-करीब हर स्कूल की कहानी है। ऐसा भी होता है कि कई बार आधे से ज्यादा शिक्षक एक साथ घूमने-फिरने के बहाने छुïट्टी पर निकल जाते हैं। शिक्षकों की स्कूलों से गायब रहने की शिकायतें आती रही हैं। इस कारण प्रदेश के स्कूलों में बायोमीट्रिक मशीनें लगाने की कवायद शुरू हुई थी। शिक्षकों की हाजिरी बायोमीट्रिक मशीनों से लगाए जाने की योजना थी। इससे स्कूलों में कई तरह के बहाने बनाकर गायब रहने वाले शिक्षकों पर शिकंजा कसना तय था। पर सरकार की योजना की भनक लगते ही अध्यापक संघ इसके खिलाफ एक हो गए थे। इस समय प्रदेश में साठ हजार से ज्यादा सरकारी शिक्षक कार्यरत हैं। अध्यापक संघों के कई संगठन सक्रिय हैं। इनमें कुछेक संगठन राज्य सरकार पर दबाव बनाने की क्षमता रखते हैं। सरकार भी अध्यापक संघों से बिगाडऩा नहीं चाहती। सरकार कोई भी निर्णय उन पर थोपने से बचती रही है। इसी कारण कई बार कोशिश कर चुकी सरकार अब तक स्कूलों में शिक्षकों की हाजिरी बायोमीट्रिक से लगाने में कामयाब नहीं हो पाई है। भविष्य निर्माता और गुरु का दर्जा हासिल शिक्षकों को खुद इससे बचना चाहिए। जो कुछेक शिक्षक सारे विभाग को बदनाम कर रहे हैं उनको बचाने की बजाय बेनकाब करना चाहिए। जो शिक्षक बिना सूचना और छुïट्टी के स्कूल से गायब रहते हैं, उनके खिलाफ सरकारी कार्रवाई में सहयोग करना जरूरी है। तभी सरकारी स्कूलों में शिक्षा के गिरते स्तर को ऊपर उठाया जा सकेगा। अभिभावकों का डगमगा चुका विश्वास बहाल हो पाएगा। जरूरत इस बात की है कि सरकार इस तरह की मनमानी रोकने के लिए शिक्षकों पर पहरा बिठाए। पर हर स्कूली की निगरानी संभव नहीं है।
[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]
प्रदेश भर के स्कूलों में छापेमारी के बाद शिक्षकों के कारनामों की पोल खुली है। राज्य सरकार और शिक्षा विभाग के पास इस तरह की शिकायतें पहले से थीं। तभी पिछड़े क्षेत्रों के स्कूलों में छापेमारी की गई। इनमें शिमला, सिरमौर, किन्नौर, मंडी, कुल्लू और चंबा के ज्यादा शिक्षक शामिल हैं। इसका यह मतलब नहीं है कि बाकी के जिलों में सब ठीक चल रहा है। दरअसल स्कूलों में देरी से आना और जल्दी निकल जाना करीब-करीब हर स्कूल की कहानी है। ऐसा भी होता है कि कई बार आधे से ज्यादा शिक्षक एक साथ घूमने-फिरने के बहाने छुïट्टी पर निकल जाते हैं। शिक्षकों की स्कूलों से गायब रहने की शिकायतें आती रही हैं। इस कारण प्रदेश के स्कूलों में बायोमीट्रिक मशीनें लगाने की कवायद शुरू हुई थी। शिक्षकों की हाजिरी बायोमीट्रिक मशीनों से लगाए जाने की योजना थी। इससे स्कूलों में कई तरह के बहाने बनाकर गायब रहने वाले शिक्षकों पर शिकंजा कसना तय था। पर सरकार की योजना की भनक लगते ही अध्यापक संघ इसके खिलाफ एक हो गए थे। इस समय प्रदेश में साठ हजार से ज्यादा सरकारी शिक्षक कार्यरत हैं। अध्यापक संघों के कई संगठन सक्रिय हैं। इनमें कुछेक संगठन राज्य सरकार पर दबाव बनाने की क्षमता रखते हैं। सरकार भी अध्यापक संघों से बिगाडऩा नहीं चाहती। सरकार कोई भी निर्णय उन पर थोपने से बचती रही है। इसी कारण कई बार कोशिश कर चुकी सरकार अब तक स्कूलों में शिक्षकों की हाजिरी बायोमीट्रिक से लगाने में कामयाब नहीं हो पाई है। भविष्य निर्माता और गुरु का दर्जा हासिल शिक्षकों को खुद इससे बचना चाहिए। जो कुछेक शिक्षक सारे विभाग को बदनाम कर रहे हैं उनको बचाने की बजाय बेनकाब करना चाहिए। जो शिक्षक बिना सूचना और छुïट्टी के स्कूल से गायब रहते हैं, उनके खिलाफ सरकारी कार्रवाई में सहयोग करना जरूरी है। तभी सरकारी स्कूलों में शिक्षा के गिरते स्तर को ऊपर उठाया जा सकेगा। अभिभावकों का डगमगा चुका विश्वास बहाल हो पाएगा। जरूरत इस बात की है कि सरकार इस तरह की मनमानी रोकने के लिए शिक्षकों पर पहरा बिठाए। पर हर स्कूली की निगरानी संभव नहीं है।
[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]